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Wednesday, November 12, 2014

सुबह स्नान से लाभ

सुबह स्नान से लाभ


प्रतिदिन स्नान स्वस्थ, सुंदर शरीर और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। जो लोग रोज़ नहाते हैं, उन्हें स्वास्थ्य की दृष्टि से कई लाभ प्राप्त होते हैं। स्नान से जहां थकान और तनाव घटता है वहीं मन प्रसंन्न और शरीर भी ऊर्जावान रहता है। हमारे शास्त्रों और आयुर्वेद में नित्य स्नान के बहुत से फायदे बताए गए हैं। यदि हम सूर्योदय के समय या उससे पहले स्नान करते हैं तो यह धर्म की नजरिए से बहुत शुभ होता है। पुराने समय में विद्वान और ऋषि-मुनि सूर्योदय से पूर्व या ठीक सूर्योदय के समय स्नान करते थे और स्नान के बाद भगवान सूर्य को अर्ध्य अर्पित करते थे। इस प्रकार की गई दिन की शुरुआत से पूरे दिन कार्यों में सफलता और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

Isnaan
नित्य सूर्योदय से पूर्व पूर्व तारों की छावं में स्नान करने से निसंदेह ही माँ लक्ष्मी की कृपा, तेज बुद्धि और चमकती दमकती त्वचा प्राप्त होती है । इस समय स्नान करने से अनेकों परेशानियों और ग्रहों के दुष्प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है। स्नान करते समय गुरू मंत्र, स्तोत्र, कीर्तन, भजन या भगवान के नाम का जाप करें ऐसा करने से अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है।
स्नान करते समय सर्वप्रथम सिर पर पानी डालना चाहिए बाद में पूरे शरीर पर। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। ऐसे स्नान करने से सिर और शरीर की गर्मी पैरों के माध्यम से निकल जाती है।
Morning Shower


नहाने के तुरंत बाद प्रतिदिन सूर्य को जल अवश्य ही अर्पित करना चाहिए। सूर्य देव को नित्य जल चढ़ाने से जातक को मान-सम्मान, सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। सूर्य देव को जल चढ़ाते हुए पानी के बीच से भगवान सूर्य को देखना चाहिए इससे हमारी आँखों की रौशनी बढ़ती है। सूर्य की किरणों में विटामिन डी के भी कई गुण होते है इससे व्यक्ति की त्वचा में भी एक आकर्षक चमक आती है। 

शास्त्रों में समय अनुसार स्नान के कई प्रकार और नहाने की एक विशेष विधि भी बताई गई है। यदि मनुष्य इस विधि से सही समय पर नहाए तो चमत्कारिक रूप से शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं। 

ब्रह्म स्नान- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान का अति विशेष महत्व है । ब्रह्म मुहूर्त में अर्थात सुबह सुबह लगभग 4-5 बजे जो स्नान भगवान का मनन चिंतन करते हुए, विभिन्न मन्त्रों का जाप करते हुए किया जाता है, उसे ब्रह्म स्नान कहते हैं।माना जाता है कि इस समय जल में सारे देवता वा तीर्थ वास करते है इसलिए इस समय स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है।ऐसा स्नान करने वाले व्यक्त्ति को ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी संकट दूर रहते है। 

देव स्नान - वर्तमान समय में अधिकतर लोग सूर्योदय के बाद ही स्नान करते हैं। जो लोग सूर्योदय के तुरंत बाद किसी नदी में या घर पर ही विभिन्न नदियों के नामों का, विभिन्न मंत्रों का जप करते हुए स्नान करते हैं तो उस स्नान को देव स्नान कहते है। ऐसे स्नान से निश्चित ही व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

ऋषि स्नान - यदि कोई व्यक्ति सुबह-सुबह, जब आकाश में तारे दिखाई दे रहे हों और उस समय ईश्वर के ध्यान करते हुए स्नान करें तो उस स्नान को ऋषि स्नान कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्योदय से पूर्व किए जाने वाले सभी स्नान श्रेष्ठ होते हैं।

दानव स्नान-आज के युग में बहुत से लोग सूर्योदय के बाद चाय-नाश्ता करके खा पी के बाद स्नान करते हैं, ऐसे स्नान को दानव स्नान कहते है। ऐसे स्नान करने वाले व्यक्तियों को जीवन में बहुत अस्थिरताओं का सामना करना पड़ता, उनके दिमाग में बहुत परेशानियाँ, तनाव रहता है । शास्त्रों के अनुसार हमें ब्रह्म स्नान, देव स्नान या ऋषि स्नान ही करना चाहिए। यही स्नान ही सर्वश्रेष्ठ स्नान कहे गए हैं।

यह भी ध्यान रखें कि शाम या रात के समय स्नान नहीं करना चाहिए। इससे दरिद्रता आती है, लेकिन यदि सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का दिन हो तो उस स्थिति में रात के समय स्नान किया जा सकता है।

क्या होता है दिशाशूल

क्या होता है दिशाशूल 

क्या आप जानते है कि बड़े बुजुर्ग तिथि देख कर आने जाने की रोक टोक क्यों करते हैं ? दरअसल ऐसा दिशाशूल के कारण होता है? दिशाशूल वह दिशा है जिस तरफ हमें उस दिन यात्रा नहीं करना चाहिए | ज्योतिष शास्त्रो के अनुसार हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है | परन्तु यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन हमें वापिस आना हो तो ऐसी दशा में दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है | साधारणतया दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता परन्तु यदि व्यक्ति को महत्वपूर्ण कार्य करना है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्ति मार्ग में आने वाली अड़चनो से अवश्य ही बच सकता है | यहाँ पर हम प्रतिदिन के दिशा शूलों कि पूरी जानकारी और उसके उपाय दे रहे है। 
यात्रा की दृष्टि से सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा, 
मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा, 
गुरुवार को दक्षिण तथा
शुक्र और रवि को पश्चिम दिशा की यात्रा करने को मना किया जाता है। 
सोमवार और गुरूवार को दक्षिण पूर्व ( आग्नेय कोण कि दिशा )
रविवार और शुक्रवार को दक्षिण पश्चिम ( नेतृत्य कोण कि दिशा )
मंगलवार को उत्तर पश्चिम ( वावयव कोण कि दिशा )
बुध और शनि को उत्तर पूर्व ( ईशान कोण कि दिशा )
इसी तरह कृष्ण पक्ष की अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को भी यात्रा का आरंभ नहीं करना चाहिए। यदि फिर भी किसी कारण वश यात्रा करनी ही पड़ जाये और दिशा शूल भी हो, तो भी नीचे दिए गए उपाए का पालन करके यात्रा की जा सकती है|
रविवार --

सोमवार--

मंगलवार --

बुधवार --

गुरूवार --

शुक्रवार --

शनिवार --

दलिया और घी

दर्पण देख कर

गुड खा कर

धनिया या तिल खा कर

दही खा कर

जों खा कर

अदरक या उड़द खा कर




इन उपायों का पालन करके दिशा शूल के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है और आप अपनी यात्रा को सफल,सुखद और मंगलमय बना सकते है|

घर के लिए अशुभ वृक्ष

घर के लिए अशुभ वृक्ष



Peepal Tree
पीपल का पेड़ कभी भूलकर भी घर में नहीं लगाना चाहिए । शास्त्रों में तो यहाँ तक भी लिखा है कि पीपल के पेड़ की छाया भी जिस घर में पड़ती है उसे त्यागना ही उचित है । लेकिन हर मनुष्य को अपने जीवन में किसी पार्क या सार्वजानिक जगह पर पीपल लगाकर उसकी सेवा अवश्य ही करनी चाहिए । 
kaktas Tree
वृहतसंहिता में कहा गया है कि ऐसे पेड़ जिनकी पत्तियों एवं टहनियों को तोड़ने पर दूध निकलता है उसे घर के पास नहीं लगना चाहिए इससे धन की हानि होती है। इसी प्रकार कांटे वाले पेड़ भी घर के मुख्य द्वार एवं घर के पास होना शुभ नहीं होता है इससे शत्रु भय बढ़ता है और कांटे नकारात्मक ऊर्जा भी उत्पन्न करते हैं। लेकिन गुलाब जैसे कांटेदार पौधे लगाए जा सकते हैं। 
Bonsai Tree
बोनसाई पौधों को घर में कभी भी स्थान नहीं देना चाहिए । ये पौधे भी ना तो घर में तैयार करने चाहिए और न ही बाहर से लाकर लगाने चाहिए। बोनसाई पौधे घर वालों का विकास रोकते हैं। 
Dahi Tamatar Image
ज्यादातर घरों में आम के पेड़ लगे होते हैं और लोग बड़े शौक से अलग-अलग तरह के आम का पेड़ लगाते हैं, लेकिन घर के पास आम का पेड़ होना आपके बच्चों पर बुरा असर डालता है। ऐसे पेड़ शौक से तो कभी न लगाएं और यदि पहले से मौजूद हो तो आप यह कर सकते हैं कि इस पेड़ के पास ऐसे पेड़ लगाएं जो शुभ माने जाते हैं। जैसे- नारियल, नीम, अशोक आदि का पेड़ आप लगा सकते हैं। 
Papaya Tree
वास्तु शास्त्र में पपीते के वृक्ष का घर में होना अषुभ कहा गया है। अतः घर में यदि यह उग आए तो प्रारंभ में ही इसे खोद कर अन्यत्र स्थानांतरित कर देना चाहिए। किंतु बड़ा हो जाने पर इसे काटें नहीं बल्कि जब इसमें फूल आना बंद हो जाए , फल लगना बंद हो जाएं तब इसके तने में एक छेद करके उसमें थोड़ी सी हींग भर दें। इससे यह स्वतः सुख जाएगा। लेकिन इस कार्य के बदले किसी एक शुभता प्रदान करने वाले पौधे का रोपन अवष्य ही करें।
Bair Tree
कभी भी अपने घर में बेर का पेड़ नहीं लगाना चाहिए । मान्यता है की बेर का वृक्ष जिस घर की सीमा में लगा होता है उस घर के लोगों की अन्य लोगों के साथ शत्रुता रहती है और शत्रु परेषान करते हैं।
Babool Tree
मेंहदी, पलाष, बबूल, अरंडी के पौधे को भी घर की सीमा के अंदर आरोहण नहीं करना चाहिए। बबूल लगाने से उस घर में काफी क्लेष होता है। और जिस घर में अरंडी का पौधा हो वहाँ समस्त कार्यों में रूकावटें आती हैं।

घर के लिए शुभ वृक्ष

घर के लिए शुभ वृक्ष


हर व्यक्ति चाहता है कि यदि उसके पास जगह है तो वह अपने घर के बगीचे में तरह तरह के पेड़ पौधे लगाये लेकिन यह भी सच है कि उनमें से कई पेड़ पौधों का घर के आस-पास होना अशुभ माना जाता है और कई ऐसे होते है जो दोष निवारक माने गए हैं। आइए जानें, कौन सा पेड़ लगाना होता है अच्छा और कौन सा है अशुभ-

Tulsi Tree
हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को एक तरह से लक्ष्मी का रूप माना गया है। कहते है की जिस घर में तुलसी की पूजा अर्चना होती है उस घर पर भगवान श्री विष्णु की सदैव कृपा दृष्टि बनी रहती है । आपके घर में यदि किसी भी तरह की निगेटिव एनर्जी मौजूद है तो यह पौधा उसे नष्ट करने की ताकत रखता है। हां, ध्यान रखें कि तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह आपको फायदे के बदले काफी नुकसान पहुंचा सकता है। 
Bail Tree
भगवान शिव को बेल का वृक्ष अत्यंत प्रिय है। मान्यता है इस वृक्ष पर स्वयं भगवान शिव निवास करते हैं। भगवान शिवजी का परम प्रिय बेल का वृक्ष जिस घर में होता है वहां धन संपदा की देवी लक्ष्मी पीढ़ियों तक वास करती हैं। इसको घर में लगाने से धन संपदा की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सारे संकट भी दूर होते है । 
Shami Tree Image
शमी का पौधा घर में होना भी बहुत शुभ माना जाता है । शमी के पौधे के बारे में तमाम भ्रांतियां मौजूद हैं और लोग आम तौर पर इस पौधे को लगाने से डरते-बचते हैं। ज्योतिष में इसका संबंध शनि से माना जाता है और शनि की कृपा पाने के लिए इस पौधे को लगाकर इसकी पूजा-उपसना की जाती है। इसका पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं ओर लगाना शुभ है। शमी वृक्ष के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा। विजयादशमी के दिन शमी की विशेष पूजा-आराधना करने से व्यक्ति को कभी भी धन-धान्य का अभाव नहीं होता। 
Ashvgandha Tree
अश्वगंधा को भी बहुत ही शुभ माना जाता है । इसे घर में लगाने से समस्त वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।अश्वगंधा का पौधा जीवन में शुभता को बढ़ाकर जीवन को और भी अधिक सक्रिय बनाता है। यह एक अत्यन्त लोकप्रिय आयुर्वेदिक औषधि है।
Awla Tree
यदि घर में आंवले का पेड़ लगा हो और वह भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में तो यह अत्यंत लाभदायक है। यह आपके कष्टों का निवारण करता है। आंवले के पौधे की पूजा करने से मनौती पूरी होती हैं। इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी समस्त पापों का शमन हो जाता है।
Ashok Tree
घर में अशोक का पौधा लगाना भी बहुत शुभ माना गया है । अशोक अपने नाम के अनुसार ही शोक को दूर करने वाला और प्रसन्नता देने वाला वृक्ष है। इससे घर में रहने वालों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
Shewtark Tree
श्वेतार्क गणपति का पौधा दूधवाला होता है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार दूध से युक्त पौधों का घर की सीमा में होना अषुभ होता है। किंतु श्वेतार्क या आर्क इसका अपवाद है। श्वेतार्क के पौधे की हल्दी, अक्षत और जल से सेवा करें। ऐसा करने से इस पौधे की बरकत से उस घर के रहने वालों को सुख शांति प्राप्त होती है। ऐसी भी मान्यता है कि जिसके घर के समीप श्वेतार्क का पौधा फलता-फूलता है वहां सदैव बरकत बनी रहती है। उस भूमि में गुप्त धन होता है या गृह स्वामी को आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है । 
Gudhal Tree
गुडहल का पौधा ज्योतिष में सूर्य और मंगल से संबंध रखता है, गुडहल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं, परंतु ध्यान रखें कि उसको पर्याप्त धूप मिलना जरूरी है। गुडहल का फूल जल में डालकर सूर्य को अघ्र्य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है। मंगल ग्रह की समस्या, संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो हनुमान जी को नित्य प्रात: गुडहल का फूल अर्पित करना चाहिए। माँ दुर्गा को नित्य गुडहल अर्पण करने वाले के जीवन से सारे संकट दूर रहते है । 
Nariyal Tree
नारियल का पेड़ भी शुभ माना गया है । कहते हैं, जिनके घर में नारियल के पेड़ लगे हों, उनके मान-सम्मान में खूब वृद्धि होती है।
Neem Tree
घर के वायव्य कोण में नीम केे वृक्ष का होना अति शुभ होता है। सामान्तया लोग घर में नीम का पेड़ लगाना पसंद नहीं करते, लेकिन घर में इस पेड़ का लगा होना काफी शुभ माना जाता है। पॉजिटिव एनर्जी के साथ यह पेड़ कई प्रकार से कल्याणकारी होता है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नीम के सात पेड़ लगाता है उसे मृत्योपरांत शिवलोक की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति नीम के तीन पेड़ लगाता है वह सैकड़ों वर्षों तक सूर्य लोक में सुखों का भोग करता है। 
Banana Tree
केले का पौधा धार्मिक कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। गुरुवार को इसकी पूजा की जाती है और अक्सर पूजा-पाठ के समय केले के पत्ते का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसे भवन के ईशान कोण में लगाना चाहिए, क्योंकि यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि वृक्ष है।इसे ईशान कोण में लगाने से घर में धन बढ़ता है। केले के समीप यदि तुलसी का पेड़ भी लगा लें तो अधिक शुभकारी रहेगा। इससे विष्णु और लक्ष्मी की कृपा साथ-साथ बनी रहती है। कहते हैं इस पेड़ की छांव तले यदि आप बैठकर पढ़ाई करते हैं तो वह जल्दी जल्दी याद भी होता चला जाता है।
Bans Tree
बांस का पौधा घर में लगाना अच्छा माना जाता है। यह समृद्धि और आपकी सफलता को ऊपर ले जाने की क्षमता रखता है। 
सामान्यता दूध या फल देने वाले पेड़ घर पर नहीं लगाने चाहिए, लेकिन नारंगी और अनार अपवाद है । यह दोनों ही पेड़ शुभ माने गए है और यह सुख एवं समृद्धि के कारक भी माने गए है । धन, सुख समृद्धि और घर में वंश वृद्धि की कामना रखने वाले घर के आग्नेय कोण (पूरब दक्षिण) में अनार का पेड़ जरूर लगाएं। यह अति शुभ परिणाम देता है।वैसे अनार का पौधा घर के सामने लगाना सर्वोत्तम माना गया है । घर के बीचोबीच पौधा न लगाएं। अनार के फूल को शहद में डुबाकर नित्यप्रति या फिर हर सोमवार भगवान शिव को अगर अर्पित किया जाए, तो भारी से भारी कष्ट भी दूर हो जाते हैं और व्यक्ति तमाम समस्याओं से मुक्त हो जाता है।

भगवान सूर्य देव को अर्ध्य देने के लाभ

भगवान सूर्य देव को अर्ध्य देने के लाभ 

इस संसार में भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देव कहा जाता है क्योंकि हर व्यक्ति इनके साक्षात दर्शन कर सकता है। रविवार भगवान सूर्य का दिन माना जाता है और इस दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व है। भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। भगवान सूर्य कि कृपा पाने के लिए तांबे के पात्र में लाल चन्दन,लाल पुष्प, अक्षत डालकर प्रसन्न मन से सूर्य मंत्र का जाप करते हुए उन्हें जल अर्पण करना चाहिए।

surya
श्री सूर्यनारायण को तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करना चाहिए। इस अर्घ्य से भगवान ‍सूर्य प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर संकटो से रक्षा करते हुए उन्हें आरोग्य, आयु, धन, धान्य, पुत्र, मित्र, तेज, यश, कान्ति, विद्या, वैभव और सौभाग्य को प्रदान करते हैं । भगवान सूर्य देव कि कृपा प्राप्त करने के लिए जातक को प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व ही शैया त्याग कर शुद्ध, पवित्र जल से स्नान के पश्चात उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। 
भगवान सूर्य सबसे तेजस्वी और कांतिमय माने गए हैं। अतएवं सूर्य आराधना से ही व्यक्ति को सुंदरता और तेज कि प्राप्ति भी होती है । ह्रदय रोगियों को भगवान सूर्य की उपासना करने से विशेष लाभ होता है। उन्हें आदित्य ह्रदय स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए। इससे सूर्य भगवान प्रसन्न होकर अपने भक्तों को निरोगी और दीर्घ आयु का वरदान देते है।
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सूर्य भगवान की कृपा पाने के लिए जातक को प्रत्येक रविवार अथवा माह के किसी भी शुक्ल पक्ष के रविवार को गुड़ और चावल को नदी अथवा बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए । तांबे के सिक्के को भी नदी में प्रवाहित करने से भी सूर्य भगवान की कृपा बनी रहती है। रविवार के दिन स्वयं भी मीठा भोजन करें एवं घर के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए प्रेरित करें। हाँ भगवान सूर्यदेव को उस दिन गुड़ का भोग लगाना कतई न भूलें । 

ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को राजपक्ष अर्थात सरकारी क्षेत्र एवं अधिकारियों का कारक ग्रह बताया गया है।व्यक्ति कि कुंडली में सूर्य बलवान होने से उसे सरकारी क्षेत्र में सफलता एवं अधिकारियों से सहयोग मिलता है। कैरियर एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में उन्नति के लिए भी सूर्य की अनुकूलता अनिवार्य मानी गयी है। 

यह ध्यान रहे कि सूर्य भगवान की आराधना का सर्वोत्तम समय सुबह सूर्योदय का ही होता है। आदित्य हृदय का नियमित पाठ करने एवं रविवार को तेल, नमक नहीं खाने तथा एक समय ही भोजन करने से भी सूर्य भगवान कि हमेशा कृपा बनी रहती है।

मनोवांछित फल पाने के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें। 

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
भगवान सूर्य के किसी भी आसान और सिद्ध मंत्र का जाप श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करें।

ॐ घृणि सूर्याय नम:।।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:।।

ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ओम्।

ॐ आदित्याय विद्महे मार्तण्डाय धीमहि तन्न सूर्य: प्रचोदयात्।

ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।

ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।
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शरद पूर्णिमा का महत्व


शरद पूर्णिमा का महत्व


हिन्दु पंचांग के अनुसार हर मास की 15वीं तिथि है जिस दिन चंद्रमा आकाश में पूरा होता है पूर्णिमा कहलाती है। वैसे तो हर माह में ही पूर्णिमा आती है लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से बहुत अधिक है। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में भी इस पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है।

Laxmi
कहा जाता है कि धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में लोग शरद पूर्णिमा को पूर्ण श्रद्धा से माँ लक्ष्मी का पूजन करते है। इस दिन प्रात: स्नान करके माँ लक्ष्मी को कमल का फूल एवं मिष्ठान अर्पण करके उनकी पूजा आराधना अवश्य ही करनी चाहिए जिससे उनका आशीर्वाद जीवन भर बना रहे ।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुई। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अदभुत एवं दिव्य रासलीलाओं का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा को 'रास पूर्णिमा' या 'कामुदी महोत्सव' भी कहा जाता है।
Sharad Purnima
हिन्दु शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती पर आती हैं। और यह देखती हैं कि उनका कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को 'कोजागरा' भी कहा जाता है। कोजागरा का अर्थ है कौन जाग रहा है।कहते है कि जो जातक इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर अवश्य ही कृपा होती है। ज्योतिषीयों के अनुसार भी जो इस रात को जागकर माता लक्ष्मी की उपासना करता है उसको मनवाँछित लाभ की प्राप्ति होती है और यदि उसकी कुण्डली में धन योग नहीं भी हो तब भी माता उन्हें धन-धान्य से अवश्य ही संपन्न कर देती हैं। उसके जीवन से निर्धनता का नाश होता है, इसलिए धन की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को इस दिन रात को जागकर अवश्य ही माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए । 

मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इसलिए इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः स्नान करके पूर्ण विधि विधान से भगवान सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। जिससे उन्हें योग्य एवं मनचाहा पति प्राप्त हो।

हिन्दु धर्म शास्त्रों में मान्यता है कि माँ लक्ष्मी को खीर बहुत प्रिय है इसलिए हर पूर्णिमा को माता को खीर का भोग लगाने से कुंडली में धन का प्रबल योग बनता है। लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने का और भी विशेष महत्व है। 

ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष अमृतमयी गुण भी होता हैं, जिससे बहुत सी बीमारियों का नाश हो जाता हैं। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को लोग गाय के दूध की खीर बनाकर माता लक्ष्मी को भोग लगाकर उसे अपने घरों की छतों पर रखते हैं जिससे वह खीर चंद्रमा की किरणों के संपर्क में आ जाये और उसके बाद अगले दिन सुबह उसका सेवन किया जाता है। इस खीर के सेवन से निरोगिता और दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन बहुत से भक्त खीर का प्रसाद भी वितरण करते है।

इस समय चंद्रमा की उपासना भी करनी चाहिए। 

इस दिन तांबे के बरतन में देशी घी भरकर किसी ब्राह्मण को दान करने और साथ में दक्षिणा भी देने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है और धन लाभ की प्रबल सम्भावना बनती है। इस दिन ब्राह्मण को खीर, कपड़े आदि का दान भी करना बहुत शुभ रहता है ।

इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीसत्रोत का पाठ एवं हवन करना भी बेहद शुभ माना जाता है। 

स्त्री को लक्ष्मी का रूप माना गया है अत: जो भी व्यक्ति इस दिन अपने घर की सभी स्त्रियों माँ, पत्नी, बहन, बेटी, भाभी, बुआ, मौसी, दादी आदि को प्रसन्न रखता है उनका आशीर्वाद लेता है, उनको यथाशक्ति उपहार देता है , माँ लक्ष्मी उस घर से कभी भी नहीं जाती है उस व्यक्ति को जीवन में किसी भी वस्तु का आभाव नहीं रहता है । इस दिन स्त्रियों का आशीर्वाद साक्षात माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद ही होता है, अत: उन्हें किसी भी दशा में नाराज़ नहीं करना चाहिए । 

इस दिन संध्या के समय 100 या इससे अधिक घी के दीपक जलाकर घर के पूजा स्थान, छत, गार्डन, तुलसी के पौधे, चारदिवारी आदि के पास रखने से, अर्थात इन दीपमालाओं से घर को सजाने से भी माँ लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है।


किस देवता को कौन से फूल चढ़ाए



किस देवता को कौन से फूल चढ़ाए


हिंदू धर्म में विभिन्न धार्मिक कर्म-कांडों में फूलों का विशेष महत्व है। देव पूजा विधियों में कई तरह के फूल-पत्तों को चढ़ाना बड़ी ही शुभ माना गया है। धार्मिक अनुष्ठान, पूजन, आरती आदि कार्य बिना पुष्प के अधूरे ही माने जाते हैं। कुछ विशेष फूल देवताओं को चढ़ाना निषेध होता है। किंतु शास्त्रों में ऐसे भी फूल बताए गए हैं, जिनको चढ़ाने से हर देवशक्ति की कृपा मिलती है यह बहुत शुभ, देवताओं को विशेष प्रिय होते हैं और हर तरह का सुख-सौभाग्य बरसाते हैं। कौन से भगवान की पूजा किस फूल से करें, इसके बारे में यहां संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है। इन फूलों को चढ़ाने से आपकी हर मनोकामना शीघ्र ही पूरी हो जाती है-
All Flowers Img
हमारे जीवन में फूलों का काफी महत्व है। फूल ईश्वर की वह रचना है, जिसकी खुशबू से हमारे घर की नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इसकी खुशबू मन को शांति देती है। वैसे तो भगवान भक्ति के भूखे हैं, लेकिन हमारे देश में भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनपर उनके प्रिय फूलों को चढ़ाने की मान्यता भी है। कहा जाता है कि भगवान के पसंदीदा रंगों के आधार मानकर उनपर उन्हीं रंगों के फूल चढ़ाए जाते हैं। ध्यान रखें, भगवान की पूजा कभी भी सूखे फूलों से न करें। कमल का फूल को लेकर मान्यता यह है कि यह फूल दस से पंद्रह दिन तक भी बासी नहीं होता। चंपा की कली के अलावा किसी भी पुष्प की कली देवताओं को अर्पित नहीं की जानी चाहिए।
श्रीगणेश- आचार भूषण ग्रंथानुसार भगवान श्रीगणेश को तुलसीदल को छोड़कर सभी प्रकार के फूल चढ़ाए जा सकते हैं। पद्मपुराण आचाररत्न में भी लिखा है कि 'न तुलस्या गणाधिपम' अर्थात् तुलसी से गणेश जी की पूजा कभी न करें। गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। गणेश जी को दूर्वा बहुत ही प्रिय है । दूर्वा के ऊपरी हिस्से पर तीन या पांच पत्तियां हों तो बहुत ही उत्तम है।
Ganesh Bhagwan
Bhole Nath
शंकरजी- भगवान शंकर को धतूरे के पुष्प, हरसिंगार, व नागकेसर के सफेद पुष्प, सूखे कमल गट्टे, कनेर, कुसुम, आक, कुश आदि के पुष्प चढ़ाने का विधान है। भगवान शंकर को धतूरे का फूल सबसे अधिक प्रिय है। इसके अलावा इनको बेलपत्र और शमी पत्र चढ़ाना बहुत ही शुभ माना जाता है। भगवान शिव जी को सेमल, कदम्ब, अनार, शिरीष , माधवी, केवड़ा, मालती, जूही और कपास के पुष्प नहीं चढ़ाये जाते है ।
सूर्य नारायण- इनकी उपासना कुटज के पुष्पों से की जाती है। इसके अलावा आक, कनेर, कमल, चंपा, पलाश, अशोक, बेला, आक, मालती, आदि के पुष्प भी प्रिय हैं। भविष्यपुराण में तो यहां तक कहा गया है कि सूर्य भगवान पर यदि एक आक का फूल चढ़ाया जाए तो इससे स्वर्ण की दस अशर्फियों को चढ़ाने जैसा ही फल मिल जाता है। भगवान सूर्य को लाल फूल बहुत ही पसंद है ।
Surya Dev Ji
Gauri Mata
भगवती गौरी- शंकर भगवान को चढऩे वाले पुष्प मां भगवती को भी प्रिय हैं। इसके अलावा बेला, सफेद कमल, पलाश, चंपा के फूल भी चढ़ाए जा सकते हैं। 
माँ दुर्गा - माँ दुर्गा को लाल गुलाब और गुड़हल का फूल भी बहुत प्रिय है। माता दुर्गा जी को बेला, अशोक, माधवी, केवड़ा, अमलतास के फूल भी चढ़ाये जाते है । लेकिन माता को दूर्वा, तुलसीदल और तमाल के पुष्प भी नहीं चढ़ाये जाते है ।
Durga Ji
Krishna Ji
श्रीकृष्ण- अपने प्रिय पुष्पों का उल्लेख महाभारत में युधिष्ठिर से करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- मुझे कुमुद, करवरी, चणक, मालती, नंदिक, पलाश व वनमाला के फूल प्रिय हैं।
लक्ष्मीजी- मां लक्ष्मी का सबसे अधिक प्रिय पुष्प कमल है। उन्हें पीला फूल चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है। इन्हें लाल गुलाब का फूल भी काफी प्रिय है।
Durga mata
Vishnu ji
विष्णुजी- भगवान विष्णु को कमल, मौलसिरी, जूही, कदम्ब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती, वासंती, चंपा, वैजयंती के पुष्प विशेष प्रिय हैं। इनको इनको पीले फूल बहुत ही पसंद है । विष्णु भगवान तुलसी दल चढ़ाने से अति शीघ्र प्रसन्न होते है । कार्तिक मास में भगवान नारायण केतकी के फूलों से पूजा करने से विशेष रूप से प्रसन्न होते है । लेकिन विष्णु जी पर आक, धतूरा, शिरीष, सहजन, सेमल, कचनार और गूलर आदि के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए । विष्णु जी पर अक्षत भी नहीं चढ़ाये जाते है ।
सरस्वती जी - विद्या की देवी माँ सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए सफेद या पीले रंग का फूल चढ़ाएं जाते यही । सफेद गुलाब, सफेद कनेर या फिर पीले गेंदे के फूल से भी मां सरस्वती वहुत प्रसन्न होती हैं।
किसी भी देवता के पूजन में केतकी के पुष्प नहीं चढ़ाए जाते।
Saraswati Mata
Bajrangbali
बजरंग बली- बजरंग बली को लाल या पीले रंग के फूल विशेष रूप से अर्पित किए जाने चाहिए। इन फूलों में गुड़हल, गुलाब, कमल, गेंदा, आदि का विशेष महत्व रखते हैं। हनुमानजी को नित्य इन फूलों और केसर के साथ घिसा लाल चंदन का तिलक लगाने से जातक की सभी मनोकामनाएँ शीघ्र ही पूरी होती है । 
शनि देव - शनि देव को नीले लाजवन्ती के फूल चढ़ाने चाहिए, इसके अतिरिक्त कोई भी नीले या गहरे रंग के फूल चढ़ाने से शनि देव शीघ्र ही प्रसन्न होते है।
shani dev

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Wednesday, June 25, 2014

कमर दर्द

प्रायः कमर दर्द से सभी का सामना होता है | आजकल की व्यस्त जीवन शैली में कई बार शरीर में कमर दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है | यह अधिकतर उन लोगों में होता है जो अधिक समय तक खड़े होकर,बैठकर या गलत तरीके से बैठकर और लेटकर कार्य करते हैं | अधिक मुलायम गद्दे पर बैठने और सोने से भी कमर दर्द हो जाता है | कई बार किसी कारण से कमर की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो बहुत कष्टपूर्ण होता है | कमर दर्द के और भी कारण हो सकते हैं जैसे ठण्ड लगने से,पानी में भीगने से अथवा और किसी रोग की वजह से |
कमर दर्द का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -
१- सौंठ के चूर्ण को अलसी के तेल में पका लें | इस तेल से कमर की मालिश करने से कमर दर्द में लाभ होता है |
२- अजवायन को एक पोटली में बाँध लें | फिर इस पोटली को तवे पर गर्म करें तथा इससे कमर की सिकाई करें ,लाभ होगा |
३- आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है |
४- लगभग ५ ग्राम सौंफ,१० ग्राम तेजपात और दस ग्राम अजवायन को एक लीटर पानी में उबालें | जब १०० ग्राम शेष रह जाए तब इसे ठंडा करके पी लें | इससे ठण्ड के कारण उत्पन्न हुए कमर दर्द में राहत मिलती है |
५- अरण्ड के पत्ते पर एक तरफ सरसों का तेल लगाकर तवे पर हल्का सा सेंक लें | फिर इसे तेल की तरफ से कमर पर बाँध लें | यह प्रयोग रात्रि में सोते समय करना चाहिए | सुबह तक कमर दर्द में बहुत आराम मिलता है |
६- आधा लीटर सरसों के तेल में १२५ गर्म लहसुन की पोथियों को कूटकर डालें | फिर उसे लहसुन के जलने तक गर्म करें और ठंडा होने पर छानकर शीशी में भर लें| इस तेल की मालिश से कमर दर्द मिट जाता है |

Monday, June 2, 2014

आम

1. ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है
आम में प्रचूर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं, जिससे स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। हाई ब्लड प्रेशर के रोगी के लिए आम एक प्राकृति उपचार है, क्योंकि इसमें पोटेशियम (156 मिलीग्राम में 4 प्रतिशत) और मैग्निशियम (9 मिलीग्राम में 2 प्रतिशत) भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

2. कैंसर के खतरे को कम करता है और कोलेस्ट्रोल की मात्रा घटाता है
आम में एक घुलनशील आहार संबंधी फाइबर पेक्टिन पाया जाता है। पेक्टिन ब्लड कोलेस्ट्रोल लेवल को कम करने में प्रभावी रूप से कार्य करता है। यह हमें ग्रंथि में होने वाले कैंसर से भी बचाता है।

3. वजन बढ़ाने में मददगार
आम का सेवन करना वजन बढ़ाने का सबसे आसान तरीका है। 150 ग्राम आम में करीब 86 कैलोरी ऊर्जा होती है, जो हमारे शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर ली जाती है। इतना ही नहीं, आम में स्टार्च पाया जाता है, जो सूगर में परिवर्तित होकर अंतत: वजन को बढ़ाता है।

4. पाचन प्रक्रिया में सहायक 
आम अपच और एसीडीटी जैसी समस्याओं को भी दूर करता है। आम में पाए जाने वाले एंजाइम्स भोजन को पचाने में मदद करते हैं। 

5. एनीमिया का उपचार 
जो लोग एनियामा से ग्रसित हैं, उनके लिए आम काफी फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें प्रचूर मात्रा में आइरन पाया जाता है। नियमित और पर्याप्त रूप से आम का सेवन शरीर में खून की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे एनीमिया जैसी बीमारी दूर रहती है।

6. गर्मवती महिला के लिए लाभदायक 
गर्मवती महिला को आयरन की विशेष जरूरत होती है। इसलिए उनके लिए आम काफी लाभदायक होता है। यूं तो डॉक्टर आयरन की गोली लेने की सलाह देते हैं, पर अगर आप चाहें तो आयरन से भरपूर आम के जूस का सेवन भी कर सकते हैं।

7. मुंहासे को रखे दूर 
आम त्वचा पर होने वाले मंहासे पर भी प्रभावी रूप से असर करता है। यह मुंहासे के बंद पड़े छिद्रों को खोल देता है। एक बार जब यह छिद्र खुल जाते हैं, तो मुंहासों का निर्माण अपने-आप बंद हो जाता है। देखा जाए तो त्वचा के बंद पड़े छिद्रों को खोलना ही मुंहासों से छुटकारा पाने से सबसे अच्छा तरीका है। पर इसके लिए आपको नियमित आम खाने की जरूरत नहीं है। आप आम के गूदे को त्वचा पर लगाएं और 10 मिनट बाद धो लें।

8. समय से पहले बुढ़ापे को रोकता है 
आम में बड़ी मात्रा में विटामिन A और विटामिन C पाए जाते हैं, जो कि शरीर के अंदर कोलाजेन प्रोटीन के निर्माण में सहायक होते हैं। कोलाजेन ब्लड वेसल और शरीर के कनेक्टिव टिशू को सुरक्षित रखता है, जिससे त्वचा की उम्र ढलने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

9. मस्तिष्क को बनाए स्वस्थ्य 
आम में विटामिन B-6 प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जो कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाता है।

10. शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है 
गाजर की तरह आम में भी बीटा-केरोटीन और कार्टेन्वाइड उच्च मात्रा में पाया जाता है। आम में पाए जाने वाले यह तत्व शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बेहतर और मजबूत बनाते हैं।

डेन्गू

डेन्गू बुखार के लिये बहुत से लोगों ने फोन करके "टिप्स" और इलाज के लिये पूछा है कि एलोपैथी के इलाज के बाद भी उन्की तकलीफ नही ठीक हुयी है और जब डेन्गू बुखार अपना असर चरम सीमा पर हो तो लजिमी है कि उसके बचाव और इलाज के लिये सही और सटीक और अचूक इलाज बताया जाय /
आयुर्वेद की औषधियां और इसका इलाज डेन्गू के लिये ;
१- यह खुराक एक पूर्ण वयस्क वयक्ति के लिये है / ब्च्चों के लिये आधी या चौथायी खुराक दे /
एक गोली महासुदर्शन घन वटी
एक गोली सप्त पर्ण घन वटी
एक गोली महाज्वरान्कुश रस
एक गोली आनद भैरव रस

इन चार गोलियों की मिलकर एक खुराक दवा है / इसे सादे पानी से अथवा गुनगुने पानी से अथवा चाय अथवा दूध अथवा तुलसी  की चाय अथवा तुलसी -अदरख की चाय अथवा शहद से रोग की तेजी के अनुसार दो दो घन्टे के अन्तराल से अथवा तीन या चार घन्टे के अन्तराल से देना चाहिये / एक या दो दिन में बुखार और इसके उपद्रव ठीक हो जाते है /

मूंग

मूंग से हम सब बहुत अच्छी तरह परिचित हैं | मूंग की दाल द्विदल धान्य है और समस्त दलहनों में अपने विशेष गुणों के कारण अच्छी मानी जाती है | मूंग काले,हरे,पीले,सफ़ेद और लाल अनेक तरह की होती है | रोगियों के लिए मूंग बहुत श्रेष्ठ बताई जाती है | मूंग की दाल से पापड़,बड़ियां व पौष्टिक लड्डू भी बनाये जाते हैं | मूंग की दाल खाने में शीतल व पचने में हलकी होती है | 
विभिन्न रोगों में मूंग का उपयोग -

१- चावल और मूंग की खिचड़ी खाने से कब्ज दूर होता है | खिचड़ी में घी डालकर खाने से कब्ज दूर होकर दस्त साफ़ आता है |

२- मूंग को सेंककर पीस लें | इसमें पानी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर लेप की तरह शरीर पर मालिश करें | इससे ज्यादा पसीना आना बंद हो जाता है |

३- मूंग की छिलके वाली दाल को दो घंटे के लिए पानी में भिगो दें| इसके बाद इसे पीसकर गाढ़ा लेप दाद और खुजली युक्त स्थान पर लगाएं,लाभ होगा |

४- टाइफाइड के रोगी को मूंग की दाल बनाकर देने से लाभ होता है,लेकिन दाल के साथ घी और मसालों का प्रयोग बिलकुल न करें |

५- मूंग को छिलके सहित खाना चाहिए | बुखार होने पर मूंग की दाल में सूखे आंवले को डालकर पकाएं | इसे रोज़ दिन में दो बार खाने से बुखार ठीक होता है और दस्त भी साफ़ होता है |

मोटापा [Obesity]

मोटापा [Obesity]
मोटापा एक बीमारी है जो अनेक कारणों से होती है यथा व्यायाम न करना , हर समय आराम करना , अधिक मात्रा में चिकने व मीठे पदार्थों का सेवन आदि | कुछ लोगों में मोटापा वंशानुगत भी होता है | मोटापे के कारण रक्तचाप बढ़ जाता है और वायु संचरण में रुकावट महसूस होती है| मोटापे के कारण त्वचा फूल जाती है जिससे शरीर पूर्ण रूप से वायु ग्रहण नहीं कर पाता | अधिक चर्बी के कारण हृदय पर भी प्रभाव पढता है जिससे हृदय की गति धीमी हो जाती है|
मोटापे से छुटकारा पाने के लिये जीवनशैली में परिवर्तन की आवश्यकता होती है | आईये जानते हैं इससे छुटकारा पाने के कुछ सरल उपाय -
१- मोटापे से पीड़ित व्यक्ति को प्रातःकाल उठकर टहलना चाहिए तथा आसान व प्राणायाम का अभ्यास नियमित रूप से करना चाहये | ऐसा करने से वजन बहुत तेज़ी से घटता है |
२- २५ मिलीलीटर में नींबू के रस में २५ ग्राम शहद मिलाकर १०० मिलीलीटर गुनगुने पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से मोटापा दूर होता है |
३- सूखा धनिया,मिश्री और मोटी सौंफ को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच सुबह पानी के साथ लेने से अधिक चर्बी कम होकर मोटापा दूर होता है | मधुमेह के रोगी यह प्रयोग न करें |
४- तुलसी के पत्तों का रस १० बूँद और शहद २ चम्मच को एक गिलास पानी में मिलाकर प्रतिदिन पीने से मोटापा कम होता है |
५- टमाटर और प्याज में थोड़ा सा सेंधा नमक और थोड़ी सी पीसी हुई काली मिर्च डालकर भोजन से पहले सलाद के रूप में खाने से भूख कम लगती है और मोटापा कम होता है |
६- रात को सोने से पहले १५ ग्राम त्रिफला चूर्ण को हल्के गर्म पानी में भिगोकर रख दें और सुबह इस पानी को छानकर एक चम्मच शहद मिलकर पी लें | इससे मोटापा जल्दी दूर होता है |

एक नीम और सौ हकीम

नीम का पेड़ बहुत ही उपयोगी है. इसकी जड़ से लेकर टहनी, फूल-पत्ती और फल तक सभी औषधीय गुणों से भरपूर है. यह सभी के लिए कल्प वृक्ष के समान है. नीम की कड़वाहट ही उसका सबसे बड़ा गुण है. गर्मी के समय सभी पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं. लेकिन नीम हरा भरा रहता है.पहले के समय में अनाज और कपडो में नीम की पत्तियां ही रखी जाती थी ताकि अनाज और कपडो में कीड़े ना हो.तो आईये जाने नीम के औषधीय गुणों के बारे में.-    

रक्त शुद्धि में - नीम आमतौर पर कीटाणुओं को खत्म करने वाला होता है. प्रतिदिन नीम की पांच कोमल पत्तियां चबाकर खाने से सभी रोग दूर हो जाते हैं, खून शुद्ध हों जाता है और संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है. इसके अलावा दांतों से जुड़े सारे रोग खत्म हो जाते हैं और आवाज सुरीली हो जाती है.

दांतों के लिए - 
नीम की दातून करने से दांत साफ, मजबूत एवं चमकदार और रोग मुक्त हो जाते हैं. 

नीम की पत्तियों को सुखाकर जलाने पर उसके धुंए से मक्खी, मच्छर भाग जाते हैं.नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है. जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है. नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है.नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं.

त्वचा सम्बन्धी रोगो में - 
नीम की पत्तियों को उबालकर उस पानी से नहाने और आहार-विहार संतुलित रखने से त्वचा से जुड़े सारे रोग खुजली,अकौता एवं सोरायसिस आदि में लाभ मिलता है.नीम की पत्तियों को पीस कर फोड़े-फुन्सियों पर लगाने से पूरा आराम और लाभ मिलता है.

डायबिटीज में - नीम के तेल को कई औषधियों में प्रयोग करते हैं. आयुर्वेद में नीम वात-पित्त-कफ-तीनों रोगों को दूर करने वाला है.  पित्ती (एलर्जी), त्वचा रोगों एवं डायबिटीज में नीम के पत्तों का रस पीने से बहुत फायदा होता है.

कान के दर्द में  - 
नीम की पत्तियों के रस और शहद को २:१ के अनुपात में पीने से पीलिया में फायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फायदा होता है.
नीम के तेल की ५-१० बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फायदा होता है.

बबासीर में - नीम के बीजों के चूर्ण को खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है.

पेट में कीड़े होने पर - यदि पेट में कीड़े हो, तो (बड़ा हो या बच्चा) नीम की नई कोपलें के रस में शहद मिलाकर चाटें कीड़े समाप्त हो जायेंगे. पानी में नीम के तेल की कुछ बूंदें डालकर चाय की तरह पी जायें बच्चे को 5बूंद बड़ों को 8 बूंद इससे ज्यादा नहीं लेना है. नीम के पत्ते जरा सी हींग के साथ पीस लें और चाट जायें पेट के कीड़े नष्ट हो जायेंगे.

बालों के लिए - यदि बाल काले करना हो, तो नीम को पानी में उबाल कर सर धोयें. कम से कम एक महीना नतीजा आप के सामने होगा.नीम के तेल की दो बूंद नाक में डालने से बालों को झड़ने और सफेद होने से रोका जा सकता है. रूसी से छुटकारा पाने के लिए रात को सोते समय बालों में नीम के तेल की मालिश करें.

कुष्ट रोग में - कुष्ट रोग के लिये नीम एक वरदान के समान है इस रोग का इलाज नीम से हो सकता है. कुष्ट रोग फूट जाये तो नीम के नीचे सोयें, नीम खाओ, नीम बिछाकर सोयें. प्रतिदिन नीम के सौ पत्तों का चूर्ण, जल के साथ सेवन किया जाए तो किसी प्रकार का 6 मास तक का जीर्ण कुष्ठ रोग समाप्त हो जाता है. नीम के पत्र एवं हरड़ चूर्ण का सेवन करने से कुष्ठ रोग समाप्त हो जाते हैं. 

बुखार में - बुखार, पुराना बुखार, टाईफाइड हो, तो 20-25 नीम के पत्ती 20-25 काली मिर्च एक पोटली में बांधकर आधा किलो पानी में उबालें पानी खौलने दें ढक्कन लगाकर रखें, ठंडा होने पर चार हिस्सा बनाकर सुबह-शाम दो दिन तक पिलायें फिर देखे बुखार उतरा या नही. इस विधि से तो पुराना से पुराना बुखार भी उतर जाता है.

स्त्रियों के लिए - प्रसव होने पर प्रसूता के घर के दरवाजे पर नीम की पत्तियाँ तथा गोमूत्र रखने की ग्रामीण परम्परा मिलती है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि घर के अन्दर दुष्ट आत्माएं अर्थात संक्रामक कीटाणुओं वाली हवा न प्रवेश करे. नीम पत्ती और गोमूत्र दोनों में रोगाणुरोधी (anti bacterial)गुण पाये जाते हैं.

आयुर्वेद मत में नीम की कोमल छाल ४ माशा तथा पुराना गुड २ तोलाडेढ़ पाव पानी में औंटकरजब आधा पाव रह जाय तब छानकर स्त्रियों को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म पुन: शुरू हो जाता है. 

प्रसूता को बच्चा जनने के दिन से ही नीम के पत्तों का रस कुछ दिन तक नियमित पिलाने से गर्भाशय संकुचन एवं रक्त की सफाई होती हैगर्भाशय और उसके आस-पास के अंगों का सूजन उतर जाता हैभूख लगती हैदस्त साफ होता हैज्वर नहीं आता

कोलेस्ट्रोल - नीम एक रक्त-शोधक औषधि हैयह बुरे कैलेस्ट्रोल को कम या नष्ट करता है. नीम का महीने में १० दिन तक सेवन करते रहने से हार्ट अटैक की बीमारी दूर हो सकती है. लीवर की बीमारी में भी नीम पत्ती का सेवन लाभदायक पाया गया है.

दमा रोग में - नीम का शुद्ध तेल ३० से ६० बूंद तक पान में रखकर खाने से दमा से छुटकारा मिलता है. नीम के २० ग्राम पत्ते को आधा लीटर पानी में उबालकर जब एक कप रह जाय,कुछ दिन पीते रहने से भी दमा जड़ से नष्ट होता है.नीम के फूलों का सेवन करने से कफ नष्ट होता है.

पथरी में - नीम की पत्तियों की राख २ माशा जल के साथ नियमित कुछ दिन तक खाते रहने से पथरी गलकर नष्ट हो जाती है.
कई वर्षों तक लगातार हर साल १०-१५ दिन तक नीम की पत्तियों का सेवन किये हुए व्यक्ति को सर्पबिच्छू आदि के विष का असर नहीं होता. नीम बीज का चूर्ण गर्म पानी के साथ पीने से भी विष उतरता है.

Monday, May 19, 2014

बरसात में जामुन खाने से होता है इन सारी बीमारियों का इलाज ---

सामान्यत: बरसात के मौसम में आने वाला फल जामुन सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। जामुन अम्लीय प्रवृति वाला होता है यही कारण है कि जामुन को नमक के साथ खाया जाता है। जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज पाया जाता है।जामुन में आयरन, विटामिन और फाइबर भी पाया जाता है इसमें खनिजों की मात्रा अधिक होती है।

इसके बीज में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम पाया जाता है। जामुन के इन्हीं गुणों के कारण हम आपको बताने जा रहे हैं जामुन से जुड़े कुछ खास नुस्खे जो रोगों में रामबाण की तरह काम करते हैं।......

- गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

-गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी।

-जामुन का गूदा पानी में घोलकर या शरबत बनाकर पीने से उल्टी, दस्त, जी-मिचलाना, खूनी दस्त और खूनी बावासीर में लाभ होता है। है। जामुन की गुठली के चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ सुबह लेने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।

- इसके ताजे, नरम पत्तों को गाय के पाव-भर दूध में पीसकर प्रतिदिन सुबह पीने से खून बवासीर में लाभ होता है। जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।

-जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर उसमें ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।

- जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है। जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच मात्रा में दिन में दो-तीन बार लेने पर पेचिश में आराम मिलता है। पथरी हो जाने पर इसके चूर्ण का उपयोग चिकित्सकीय निर्देशन में दही के साथ करें।

- दांतों, मसूढ़ों से खून आता हो, पानी लगता हो, मसूढ़े फूलते हों तो इसके पत्तों की राख को दांतों पर मलने से मसूढ़े मजबूत होते हैं, दांत चमकीले बन जाते हैं।गला बैठ गया हो, आवाज बेसुरी हो गयी हो, गले में छाले हो गये हों तो इसके पत्ते पानी में उबाल कर उसे थोड़ा ठंडा कर उससे गरारे करें।

- रक्तप्रदर की समस्या होने पर जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाएं और दिन में दो से तीन बार एक चम्मच की मात्रा में ठंडे पानी से लें। गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

करेला कैसे खाये

हमारे शरीर में छ: रस चाहिए - मीठा, खट्टा, खारा, तीखा, कषाय और कड़वा | पांच रस, खट्टा/खारा/तीखा, तो बहुत खाते हैं लेकिन कड़वा नहीं खाते हैं | कड़वा कुदरत ने करेला बनाया है लेकिन करेले को निचोड़ के उस की कड़वाहट निकाल देते हैं | करेले का छिलका नहीं उतारना चाहिए और उसका कड़वा रस नहीं निकालना चाहिए | हफ्ते में, पन्दरह दिन में एक दिन करेला खाना तबियत के लिए अच्छा है |

करेला के फायदे


करेले का स्वाद भले ही कड़वा हो, लेकिन सेहत के लिहाज से यह बहुत फायदेमंद होता है। करेले में अन्य सब्जी या फल की तुलना में ज्यादा औषधीय गुण पाये जाते हैं। करेला खुश्क तासीर वाली सब्जी‍ है। यह खाने के बाद आसानी से पच जाता है। करेले में फास्फोरस पाया जाता है जिससे कफ की शिकायत दूर होती है। करेले में प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस और विटामिन पाया जाता है। आइए हम आपको कडवे करेले के गुणों के बारे में बताते हैं।

करेला खाने के लाभ :-

1)कफ की शिकायत होने पर करेले का सेवन करना चाहिए। करेले में फास्फोरस होता है जिसके कारण कफ की शिकायत दूर होती है।

2)करेला हमारी पाचन शक्ति को बढाता है जिसके कारण भूख बढती है।

3)करेले ठंडा होता है, इसलिए यह गर्मी से पैदा हुई बीमारियों के उपचार के लिए फायदेमंद है।

4)दमा होने पर बिना मसाले की छौंकी हुई करेले की सब्जी खाने से फायदा होता है।

5)लकवे के मरीजों के लिए करेला बहुत फायदेमंद होता है। इसलिए लकवे के मरीज को कच्चा करेला खाना चाहिए।

6)उल्टी-दस्त या हैजा होने पर करेले के रस में थोड़ा पानी और काला नमक मिलाकर सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है।


7)लीवर से संबंधित बीमारियों के लिए तो करेला रामबाण औषधि है।

8)जलोदर रोग होने पर आधा कप पानी में 2 चम्मच करेले का रस मिलाकर ठीक होने तक रोजाना तीन-चार बार सेवन करने से फायदा होता है।

9)पीलिया के मरीजों के लिए करेला बहुत फायदेमंद है। पीलिया के मरीजों को पानी में करेला पीसकर खाना चाहिए।

10)डायबिटीज के लिए करेला रामबाण इलाज है। करेला खाने से शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है।

11)करेला खून साफ करता है। करेला खाने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है।

12)बवासीर होने पर एक चम्मच करेले के रस में आधा चम्मखच शक्कर मिलाकर एक महीने तक प्रयोग करने से बवासीर की शिकायत समाप्त हो जाती है।

13)गठिया रोग होने पर या हाथ-पैर में जलन होने पर करेले के रस से मालिश करना चाहिए। इससे गठिया के रोगी को फायदा होगा।

14)दमा होने पर बिना मसाले की करेले की सब्जी खाना चाहिए। इससे दमा रोग में फायदा होगा।

15)उल्टी, दस्त और हैजा होने पर करेले के रस में थोडा पानी और काला नमक डालकर पीने से फायदा होता है।

16)करेले के रस को नींबू के रस के साथ पानी में मिलाकर पीने से वजन कम किया जा सकता है।


सौंफ

मस्तिष्क संबंधी रोगों में सौंफ अत्यंत गुणकारी है। यह मस्तिष्क की कमजोरी के अतिरिक्त दृष्टि-दुर्बलता, चक्कर आना एवं पाचनशक्ति बढ़ाने में भी लाभकारी है। इसके निरंतर सेवन से दृष्टि कमजोर नहीं होती तथा मोतियाबिंद से रक्षा होती है।

* उलटी, प्यास, जी मिचलाना, पित्त-विकार, जलन, पेटदर्द, अग्निमांद्य, पेचिश, मरोड़ आदि व्याधियों में यह लाभप्रद है।

* सौंफ, धनिया व मिश्री का समभाग चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में भोजन के बाद लेने से हाथ-पाँव तथा पेशाब की जलन, अम्लपित्त (एसिडिटी) व सिरदर्द में आराम मिलता है।

* सौंफ और मिश्री का समभाग चूर्ण मिलाकर रखें। दो चम्मच मिश्रण दोनों समय भोजन के बाद एक से दो माह तक खाने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है तथा जठराग्नि तीव्र होती है।

* बच्चों के पेट के रोगों में दो चम्मच सौंफ का चूर्ण दो कप पानी में अच्छी तरह उबाल लें। एक चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर ठण्डा कर लें। इसे एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन-चार बार पिलाने से पेट का अफरा, अपच, उलटी (दूध फेंकना), मरोड़ आदि शिकायतें दूर होती हैं।

* आधी कच्ची सौंफ का चूर्ण और आधी भुनी सौंफ के चूर्ण में हींग और काला नमक मिलाकर 2 से 6 ग्राम मात्रा में दिन में तीन-चार बार प्रयोग कराएं इससे गैस और अपच दूर हो जाती है।

* भूनी हुई सौंफ और मिश्री समान मात्रा में पीसकर हर दो घंटे बाद ठंडे पानी के साथ फँकी लेने से मरोड़दार दस्त, आँव और पेचिश में लाभ होता है। यह कब्ज को दूर करती है।

* बादाम, सौंफ और मिश्री तीनों बराबर भागों में लेकर पीसकर भर दें और रोज दोनों टाइम भोजन के बाद 1 टी स्पून लें। इससे स्मरणशक्ति बढ़ती है।

* 5-6 ग्राम सौंफ लेने से लीवर ठीक रहता है और आंखों की ज्योति बढ़ती है।

* तवे पर भुनी हुई सौंफ के मिक्स्चर से अपच के मामले में बहुत लाभ होता है। दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से अपच और कफ की समस्या समाप्त होती है।

* सौंफ की ठंडाई बनाकर पीएं। इससे गर्मी शांत होगी। हाथ-पाव में जलन होने की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया कूट-छानकर, मिश्री मिलाकर खाना खाने के बाद 5 से 6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।

* अगर गले में खराश हो गई है तो सौंफ चबाना फायदेमंद होता है।


* सौंफ चबाने से बैठा हुआ गला भी साफ हो जाता है। रोजाना सुबह-शाम खाली सौंफ खाने से खून साफ होता है जो कि त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इससे त्वचा चमकती है। वैसे तो सौंफ का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। इससे कई प्रकार के छोटे-मोटे रोगों से निजात मिलती है।